स्वर्ण मंदिर जाना हुआ, वाघा बॉर्डर भी, जलियांवाला भी देखा, सड़कों पर मांझा बनते यहीं देखा, दोस्त की फ़ैन्स के कॉलेज भी ताके। किसी ने बताया कि लोहड़ी पर सरहद के दोनों तरफ़ जमकर पतंगबाज़ी होती है और कई बार पाकिस्तान से पतंगें अपने मुल्क में आकर गिरती हैं तो यहां की पतंगें वहां...जावेद साहब का कई साल पहले लिखा गाना याद आ गया- 'पंछी, नदिया, पवन के झोंके, कोई सरहद न इन्हें रोके'।
ये कोशिश है, अमृतसर की ख़ुशबू को, तस्वीरों के ज़रिए आप तक पहुंचाने की।
(वैसे आप जो ऊपर ब्लॉग के शीर्षक वाला बैनर देख रहे हैं, उसकी दोनों मछलियां स्वर्ण मंदिर के ताल में ही तैरती पाई गईं थीं !)