Friday, September 18, 2009

गेटवे ऑफ़ इंडिया शॉट फ़्रॉम अ गेट

मुंबई की इसी जगह के ठीक सामने हुआ था 26 नवम्बर का वो दिल दहला देने वाला हमला। अभी जून के आख़िर में मुंबई जाना हुआ। ताजमहल होटल मशहूर पहले से है लेकिन अब और ध्यान आकर्षित करने वाली इमारत बन गई है। गेट वे ऑफ़ इंडिया घूमने आईं तमाम नज़रें गेटवे से उड़ उड़ के ताज के गुंबद का चक्कर लगा कर लौट रही थीं। उनमें ख़ौफ़ था तो ग़ुस्सा भी और बेबसी भी। गेट वे बाउंड्री वॉल में ही ये लोहे का दरवाज़ा है जिसमें से झांक कर मेरा कैमरा आपको जॉर्ज पंचम के भारत आगमन की ख़ुशी में 1911 में तामीर ये इमारत दिखा रहा है। ताजमहल होटल से जुड़ी कुछ तस्वीरें अगली पोस्ट में।

Sunday, September 13, 2009

जब सूरज को जेल हुई

गुड़गांव एक्सप्रेस-वे दिल्ली और गुड़गांव के बीच ज़रूरी रफ़्तार मुहैया कराता है। लेकिन बेचारा बेहद ख़तरनाक दुर्घटनाएं होने के लिए भी बदनाम है। क़रीब एक महीना पहले यहां से गुज़रना हुआ। हल्की बूंदा-बांदी के बाद टोल प्लाज़ा के पास इस जगह पर लगे टावर की डोरियों के पीछे लाल गोला कुछ क़ैद सा लगा। लगा, अरे ये सूरज को किसने जेल में डाल दिया।

Friday, September 11, 2009

अधबनी बिल्डिंग फ़ायदेमंद भी हो सकती है !


मैं यहीं रहता हूं...नहीं-नहीं...मेरा मतलब यहां से कुछ फ़्लोर नीचे। हमारे जो बिल्डर महाशय हैं वो रिसेशन के नाम पर बिल्डिंग पूरी करने का नाम नहीं ले रहे। दूसरे फ़्लोर, जहां हम रहते हैं, वहां की खिड़की से झांक कर देखा तो बादल अपनी पूरी रंगत लिये मुस्कुरा रहे थे । सोचा, चलो ज़रा इस छतनुमा जगह पर जाकर देखते हैं। कैम लिये वहां पहुंचे तो कुछ खुजली सी होने लगी। नतीजतन खींच डालीं चार-छ: तस्वीरें। थोड़ा शटर-अपर्चर से खेले तो नतीजे वाक़ई सुखद निकले।
हां, लेकिन मैंने ये क़तई नहीं सोचा था कि ये अधबनी बिल्डिंग इस तरह भी काम आएगी।

Thursday, September 10, 2009

ये कालीन प्रकृति ने बनाया है


दिल्ली का लोधी गार्डन जॉगर्स के बीच मशहूर है लेकिन आप शायद न जानते हों कि ये वो जगह भी है जहां आप 100-150 तस्वीरें खींचें तो भी आपको लगेगा कि अरे ये तो छूट ही गया ये भी ले लेते हैं। यहां ऐतिहासिक इमारतों का जमावड़ा तो है ही साथ ही प्रकृति भी अपने तमाम रंगों के साथ मौजूद है।मेरी पिछली तस्वीर यहीं ली गई थी और ये वाली भी। ये सिर्फ़ नमूना है...अगर दिल्ली में रहते हैं तो थोड़ा वक़्त निकालिये, लोधी गार्डन होके आइए। यकीन मानिए आप निराश नहीं होंगे। किसी ने सच ही कहा है- दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत चीज़ें मुफ़्त उपलब्ध हैं।

Wednesday, September 9, 2009

सूरज की करामात


पिछली पोस्ट में सूरज की करामात का ज़िक्र किया था तो इस पोस्ट में उसी कड़ी को आगे बढ़ा रहा हूं। उस रोशनी में कुछ ऐसा है कि वो जिसे चाहे उसे रहस्यमयी और दिलचस्प बना सकती है। एक साधारण तस्वीर को असाधारण बना सकते की क़ुव्वत उसी में है। मुझे नहीं लगता कि एक ख़ास तरह से सूरज भाई यहां मेहरबान नहीं होते तो ये तस्वीर ख़ूबसूरत बन पाती। आप क्या सोचते हैं?

Tuesday, September 8, 2009

मेरा जग रोशन

जुहू बीच पर दुड़की लगाते इस लड़के की तस्वीर मैंने क़ैद नहीं की, बस यूं समझिये हो गई। क्यूंकि शायद मैं चाहकर भी उसके पैर से छलकते पानी को इतना ख़ूबसूरत नहीं बना पाता अगर सूरज की चमक ठीक वही जगह दिलचस्प तरीक़े से रोशन नहीं कर जाती।

Sunday, September 6, 2009

ताज, जैसा मैंने देखा- 3


ताज की ओट में मुस्कुराता सूरज और बादलों की अठखेली इस तस्वीर को मेरे लिए ख़ास बनाती है।

Saturday, September 5, 2009

ताज, जैसा मैंने देखा- 2

ताज के मुख्यद्वार से ली गई तस्वीर।

Thursday, September 3, 2009

ताज, जैसा मैंने देखा- 1


ताज के शहर से हूं। इस बार घर में था तो सोचा क्यूं न चक्कर मार आया जाए तो अकेले ही निकल पड़े...मेरा मतलब बिल्कुल अकेले नहीं, कैम के साथ। ये तस्वीर ताज के चबूतरे के दायीं ओर बनी बेंच के पास लंबलेट होकर खींची गई है। शाही बनाने और पुरातनता देने के लिए मोनोक्रोम इस्तेमाल किया है।
(तस्वीर को बड़ा करके देखने के लिए उस पर क्लिक करें)

Wednesday, September 2, 2009

मां


कुछ वक़्त हुआ, तस्वीरों का मुझे जकड़ना शुरु किये हुए...यहां-वहां, इधर-उधर शॉट्स नज़र आने लगे हैं। कुछ पोर्ट्रेट, कुछ कुदरत की ख़ूबसूरती, कहीं बेहिसाब एहसास छिटके हुए...चुनौती देने के अंदाज़ में। जैसे कह रहे हों...अच्छा, कैमरा रखते हो, चलो हमें क़ैद करके दिखाओ। और मैं पागल, इनकी चालों को अनदेखा कर अपने कैम की एलसीडी में नतीजे देखकर माथा ठोकने वाला। च च च नहीं। साला, ढंग से आ नहीं पा रहा। और इतनी देर में वो सारे एहसास शॉट को बदल कर रख देंगे। अब आप लगे रहिए कभी ख़ुद को, कभी कैम की टाइमिंग को गरियाने। यही मज़ा है इस आर्ट का...जो पल जहां है जैसा है वैसा है, अगले पल का भरोसा नहीं। क़ैद करने की क़ाबिलयत हो तो कर लो वर्ना जी कुढ़ाओ।
ब्लॉगरी पहले से चल रही है लेकिन अपनी तस्वीरों के लिए नए घर की तलाश थी सो यहां इस पहली तस्वीर के साथ ये ब्लॉग शुरु कर रहा हूं जिस पर जो पल क़ैद कर सका उसको साझा करूंगा।
तस्वीरों के बारे में राय-मशवरा ज़रूर बांटते रहें, ऊर्जा मिलती रहेगी।