Saturday, May 15, 2010

आसमां के पार शायद और भी कोई आसमां होगा...

पिछले एक साल में ज़िंदगी का पहला हवाई सफ़र किया...मन ही मन राइट ब्रदर्स का शुक्रिया अदा किया...फिर कुछ और सफ़र। जाना कि बादल इतने ख़ूबसूरत भी लग सकते हैं...जाना कि आसमां के पार वाकई कोई आसमां होता होगा और एक क्यूं कई कई होते होंगे। कहीं कहीं बादल यूं लगे जैसे किसी की डलिया से कपास उड़ कर बिखर गई हो। जहाज़ के डैनों पर अठखेलियां करती धूप विंडो सीट हासिल करने के लिए दिखाए गए जोश को सार्थक करती दिखी। इन सारे पलों को बेकार जाने देता तो नाइंसाफ़ी होती। नहीं? तो देखिए कुछ तस्वीरें न जाने कितने हज़ार फीट की ऊंचाई से।
(तस्वीर को बड़े आकार में देखने के लिए उस पर क्लिक करें)

6 comments:

  1. lajawaab tasveerein...adbhut sirji...

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  2. कुछ तो विशेष है आपके चित्रों में जो दिखता तो है पर व्यक्त नहीं होता है ।

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  3. बेहतरीन तस्वीरें

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  4. बड़ी ही मासूम हसरत को उसी मासूमि‍यत से प्रस्‍तुत कि‍या है आपने आपको पहली हवाई यात्रा के बाद सुरक्षि‍त रहकर लेखबद्ध कर पाने के लि‍ये बधाई।

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  5. इस पहले अनुभव के लिए बधाई, खिड़की का पूरा-पूरा फायादा उठाया लगता है आपने वरना तो अगर एयर होस्टेज देख लेती तो पूछती कि सर आपने चेतावनी नहीं सुनी कि मोबाईल का इस्तेमाल वर्जित है :) खैर, उत्सुकता से भरे आपके मन ने जो करने को कहा वह लाजबाब चीज हम चित्रों के तौर पर देख सकते है! आपका यह लेख देख डाक्टर अनुरक का एक पुराने लेख पर कुछ लेने याद आ गई;
    मुंए जहाज़ों से कहना कभी होरन बजा के चले !
    अपना खुदा आजकल चादर ओढ़ के सोया है !!

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