पिछले एक साल में
ज़िंदगी का पहला हवाई सफ़र किया...मन ही मन राइट ब्रदर्स का शुक्रिया अदा किया...फिर कुछ और सफ़र। जाना कि बादल इतने ख़ूबसूरत भी लग सकते हैं...जाना कि आसमां के पार वाकई कोई आसमां होता होगा और एक क्यूं कई कई होते होंगे। कहीं कहीं बादल यूं लगे जैसे किसी की डलिया से कपास उड़ कर बिखर गई हो। जहाज़ के डैनों पर अठखेलियां करती धूप विंडो सीट हासिल करने के लिए दिखाए गए जोश को सार्थक करती दिखी। इन सारे पलों को बेकार जाने देता तो नाइंसाफ़ी होती। नहीं? तो देखिए कुछ तस्वीरें न जाने कितने हज़ार फीट की ऊंचाई से।
(तस्वीर को बड़े आकार में देखने के लिए उस पर क्लिक करें)





lajawaab tasveerein...adbhut sirji...
ReplyDeleteकुछ तो विशेष है आपके चित्रों में जो दिखता तो है पर व्यक्त नहीं होता है ।
ReplyDeleteबेहतरीन तस्वीरें
ReplyDeleteबड़ी ही मासूम हसरत को उसी मासूमियत से प्रस्तुत किया है आपने आपको पहली हवाई यात्रा के बाद सुरक्षित रहकर लेखबद्ध कर पाने के लिये बधाई।
ReplyDeleteइस पहले अनुभव के लिए बधाई, खिड़की का पूरा-पूरा फायादा उठाया लगता है आपने वरना तो अगर एयर होस्टेज देख लेती तो पूछती कि सर आपने चेतावनी नहीं सुनी कि मोबाईल का इस्तेमाल वर्जित है :) खैर, उत्सुकता से भरे आपके मन ने जो करने को कहा वह लाजबाब चीज हम चित्रों के तौर पर देख सकते है! आपका यह लेख देख डाक्टर अनुरक का एक पुराने लेख पर कुछ लेने याद आ गई;
ReplyDeleteमुंए जहाज़ों से कहना कभी होरन बजा के चले !
अपना खुदा आजकल चादर ओढ़ के सोया है !!
kshmaa kare Dr. Anuraag padhe !
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