Saturday, June 5, 2010

संगेमरमर की नायाब इमारत की धड़कनें सुनो...

ताज के शहर से हूं। उस शहर से जहां तमाम छतों से ताज नज़र आ जाता है। छोटा सा शहर...छोटी ख़्वाहिशों वाला। अपने में सिमटा। उस दिन ..जिसकी ये तस्वीरें हैं...घर में बैठा हुआ था। अचानक...हल्की बूंदाबांदी हुई...मौसम का मिज़ाज बदला...बदली छाई। लगा ताज जाना चाहिए...घर से दूरी भी महज़ तीन किलोमीटर है तो रुख़ कर लिया सीधे ताजमहल का। पता नहीं तस्वीरों में कितना क़ैद हो पाया लेकिन वाक़ई माशाअल्लाह बादलों की करामात ने काफ़ी खूबसूरत बना दिया था। और दिनों से काफ़ी हटकर बादलों की चादर ऊपर छाई थी। रंगों का समंदर बादलों पर उड़ेला हुआ। छिटपुट लाल...संतरी..काला. सफेद और नीचे संगेमरमर की नायाब इमारत। सफ़ेद संगेमरमर की इस इमारत को पता नहीं मैने कितनी बार देखा होगा...लेकिन न तो कभी फ़तेहपुर सीकरी जैसे मुकम्मल शहर से ज़्यादा अपील महसूस हुई औऱ न ही आगरा क़िले की दीवारों सी रॉयल्टी...फिर भी पता नहीं कैसे वो दिन कुछ ख़ास था। शायद ताज को देखकर सोच की तमाम रस्सियां खुलने सी लगी थीं। सतरंगी मौसम की रंगत ने काफी कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। एक नई नजर से देखने को मजबूर कर दिया। और मैने देखा वाकई सोच के जाले चो चिपक से गए थे अब हटने लगे थे। एक नया ही थॉट प्रोसेस...एक इमारत को देखने के कितने तरीक़े हो सकते हैं आख़िर सीख रहा था ये सब भी। तो जब सोच बदली तो सब कुछ संवरा हुआ सा लगा। लगा कि यार कुछ तो ख़ास है इसमें। यूं ही नहीं कई दीवाने बार बार आगरा आते हैं...य़ूं ही नहीं बिल क्लिंटन ने ताज की विज़िटर बुक में लिखा...दुनिया में दो तरह के लोग हैं एक जिन्होंने ताज देखा औऱ दूसरे जिन्होंने नहीं देखा। औऱ ख़ुद शामिल हो गए पहली कैटेगरी में। ये सारी बातें एवें ही तो नहीं हो सकतीं जब तक वाक़ई दिल को पिघला देने का दम न ऱखती हो कोई इमारत।
दफ़्तर में एक सहयोगी ने ये कह दिया कि जब उन्होंने पहली बार ताज देखा तो मुख्यद्वार से जैसे ही अंदर घुसे तो रो पड़े। भावनाओं का ज्वार उस इमारत को देखकर रुक नहीं सका। उफ़...शायरों की शायरी का हिस्सा जो हुआ ताज तो समझ आया क्यूं। ऐसे ही किन्ही दिनों में शायर के पन्नों पर अशआर की स्याही बिखरी होगी। ख़ैर...बहुत हुआ शायराना बखान...फ़िलहाल इन तस्वीरों का मज़ा लीजिए और अपनी राय देना न भूलें। आपकी हर राय के बाद कुछ नया पोस्ट करने का हौसला मिलता रहता है।
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Saturday, May 15, 2010

आसमां के पार शायद और भी कोई आसमां होगा...

पिछले एक साल में ज़िंदगी का पहला हवाई सफ़र किया...मन ही मन राइट ब्रदर्स का शुक्रिया अदा किया...फिर कुछ और सफ़र। जाना कि बादल इतने ख़ूबसूरत भी लग सकते हैं...जाना कि आसमां के पार वाकई कोई आसमां होता होगा और एक क्यूं कई कई होते होंगे। कहीं कहीं बादल यूं लगे जैसे किसी की डलिया से कपास उड़ कर बिखर गई हो। जहाज़ के डैनों पर अठखेलियां करती धूप विंडो सीट हासिल करने के लिए दिखाए गए जोश को सार्थक करती दिखी। इन सारे पलों को बेकार जाने देता तो नाइंसाफ़ी होती। नहीं? तो देखिए कुछ तस्वीरें न जाने कितने हज़ार फीट की ऊंचाई से।
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Tuesday, May 4, 2010

इंडिया गेट की ये तस्वीर रह गई थी...

कुछ दिन पहले इंडिया गेट की कुछ तस्वीरें अपलोड की थीं...आपकी क़ीमती प्रतिक्रियायें भी मिलीं...लेकिन एक तस्वीर रह गई थी...इसे अब डाल रहा हूं। और ये जानना बेहद ज़रूरी है कि इस तस्वीर पर आप क्या सोचते हैं...क्यूंकि अब तक जिन लोगों को निजी तौर पर ये दिखाई गई है...बहुत दिलचस्प प्रतिक्रियायें मिली हैं।
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Friday, April 2, 2010

सूरजकुंड मेला-तस्वीरों में क़ैद

सूरजकुंड...बड़ा ही मशहूर शिल्प मेला। मेला बीते कुछ दिन हो गए...वक़्त नहीं मिला कि वहां की तस्वीरें आपसे साझा कर सकूं...देरी के लिए माफ़ी के साथ अब कर रहा हूं।

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Thursday, April 1, 2010

हो सकता है, 'इंडिया गेट' आपने इस तरह न देखा हो !

जब दिल में कुछ आ जाए तो जी चाहता है कर डालो...बस कल शाम कुछ यूं ही हुआ। बाइक उठाई और चल पड़े इंडिया गेट की तरफ़। ये कुछ तस्वीरें हैं, इंडिया गेट को थोड़ा अलग नज़र से देखने की कोशिश है...उम्मीद है तस्वीरें आपको अच्छी लगेंगीं।
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Sunday, March 28, 2010

अद्भुत चितेरे की दो रचनाएं



दोनों ही चित्र प्रकृति के रंगों को बख़ूबी दिखा रहे हैं। पहला, एक टिड्डा जो ताजमहल के पीछे यमुना नदी के किनारे तार की बाड़ पर आराम फ़रमा रहा है या हो सकता है, ताज को निहारने निकला हो!
दूसरा, ख़ूबसूरत भोपाल लेक पर बत्तखों के एक झुंड के बीच मासूम सी नज़र आ रही बतख का।