दफ़्तर में एक सहयोगी ने ये कह दिया कि जब उन्होंने पहली बार ताज देखा तो मुख्यद्वार से जैसे ही अंदर घुसे तो रो पड़े। भावनाओं का ज्वार उस इमारत को देखकर रुक नहीं सका। उफ़...शायरों की शायरी का हिस्सा जो हुआ ताज तो समझ आया क्यूं। ऐसे ही किन्ही दिनों में शायर के पन्नों पर अशआर की स्याही बिखरी होगी। ख़ैर...बहुत हुआ शायराना बखान...फ़िलहाल इन तस्वीरों का मज़ा लीजिए और अपनी राय देना न भूलें। आपकी हर राय के बाद कुछ नया पोस्ट करने का हौसला मिलता रहता है।
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